दिनांक 27.08.2019 दिन मंगलवार तदनन्तर संवत २०७६ भाद्रपद माह की द्वादशी को आनेवाली है :-

.        दिनांक 27.08.2019 दिन मंगलवार तदनन्तर संवत २०७६ भाद्रपद माह की द्वादशी को आनेवाली है :-


                        "बछ बारस"


           बछ बारस को गौवत्स द्वादशी और बच्छ दुआ भी कहते हैं। बछ बारस भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है। आइये जानें इसका महत्त्व।
           बछ यानि बछड़ा, गाय के छोटे बच्चे को कहते हैं। इस दिन को मनाने का उद्देश्य गाय व बछड़े का महत्त्व समझाना है। यह दिन गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। गोवत्स का मतलब भी गाय का बच्चा ही होता है।
          बछ बारस का यह दिन कृष्ण जन्माष्टमी के चार दिन बाद आता है। कृष्ण भगवान को गाय व बछड़ा बहुत प्रिय थे तथा गाय में सैकड़ो देवताओं का वास माना जाता है। गाय व बछड़े की पूजा करने से कृष्ण भगवान का, गाय में निवास करने वाले देवताओं का और गाय का आशीर्वाद मिलता है जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है ऐसा माना जाता है।
         इस दिन महिलायें बछ बारस का व्रत रखती है। यह व्रत सुहागन महिलाएँ सुपुत्र प्राप्ति और पुत्र की मंगल कामना के लिए व परिवार की खुशहाली के लिए करती हैं। गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है। इस दिन गाय का दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही, मक्खन, घी आदि का उपयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा गेहूँ और चावल तथा इनसे बने सामान नहीं खाये जाते।
        भोजन में चाकू से कटी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करते है। इस दिन अंकुरित अनाज जैसे चना, मोठ, मूंग, मटर आदि का उपयोग किया जाता है। भोजन में बेसन से बने आहार जैसे कढ़ी, पकोड़ी, भजिये आदि तथा मक्के, बाजरे, ज्वार आदि की रोटी तथा बेसन से बनी मिठाई का उपयोग किया जाता है।
        बछ बारस के व्रत का उद्यापन करते समय इसी प्रकार का भोजन बनाना चाहिए। उजरने में यानि उद्यापन में बारह स्त्रियाँ, दो चाँद सूरज की और एक साठिया इन सबको यही भोजन कराया जाता है। शास्त्रो के अनुसार इस दिन गाय की सेवा करने से, उसे हरा चारा खिलाने से परिवार में महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा परिवार में अकालमृत्यु की सम्भावना समाप्त होती है।


 बछ बारस की पूजा विधि


         सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर शुद्ध कपड़े पहने। दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को साफ पानी से नहलाकर शुद्ध करें। गाय और बछड़े को नए वस्त्र ओढ़ाएँ। फूल माला पहनाएँ। उनके सींगों को सजाएँ। उन्हें तिलक करें। गाय और बछड़े को भीगे हुए अंकुरित चने अंकुरित मूंग,  मटर, चने के बिरवे, जौ की रोटी आदि खिलाएँ। गौ माता के पैरों की धूल से खुद के तिलक लगाएँ। इसके बाद बछ बारस की कहानी सुने। इस प्रकार गाय और बछड़े की पूजा करने के बाद महिलायें अपने पुत्र के तिलक लगाकर उसे नारियल देकर उसकी लंबी उम्र और सकुशलता की कामना करें। उसे आशीर्वाद दें। बड़े बुजुर्ग के पाँव छूकर उनसे आशीर्वाद लें। अपनी श्रद्धा और रिवाज के अनुसार व्रत या उपवास रखें। मोठ या बाजरा दान करें। सासुजी को बायना देकर आशीर्वाद लें।
          यदि आपके घर में खुद की गाय नहीं हो तो दूसरे के यहाँ भी गाय बछड़े की पूजा की जा सकती है। ये भी संभव नहीं हो तो गीली मिट्टी से गाय और बछड़े की आकृति बना कर उनकी पूजा कर सकते है। कुछ लोग सुबह आटे से गाय और बछड़े की आकृति बनाकर पूजा करते है। शाम को गाय चारा खाकर वापस आती है तब उसका पूजन धुप, दीप, चन्दन, नैवेद्य आदि से करते है।


 बछ बारस की कहानी (1)


          एक बार एक गाँव में भीषण अकाल पड़ा। वहाँ के साहूकार ने गाँव में एक बड़ा तालाब बनवाया परन्तु उसमे पानी नहीं आया। साहूकार ने पंडितों से उपाय पूछा। पंडितों ने बताया की तुम्हारे दोनों पोतों में से एक की बलि दे दो तो पानी आ सकता है। साहूकार ने सोचा किसी भी प्रकार से गाँव का भला होना चाहिए। साहूकार ने बहाने से बहु को एक पोते हंसराज के साथ पीहर भेज दिया और एक पोते को अपने पास रख लिया जिसका नाम बच्छराज था। बच्छराज की बलि दे दी गई। तालाब में पानी भी आ गया।
          साहूकार ने तालाब पर बड़े यज्ञ का आयोजन किया। लेकिन झिझक के कारण बहू को बुलावा नहीं भेज पाये। बहु के भाई ने कहा -  ”तेरे यहाँ इतना बड़ा उत्सव है तुझे क्यों नहीं बुलाया ? मुझे बुलाया है, मैं जा रहा हूँ।" बहू बोली - ”बहुत से काम होते हैं इसलिए भूल गए होंगें,  अपने घर जाने में कैसी शर्म, मैं भी चलती हूँ।"
         घर पहुँची तो सास ससुर डरने लगे कि बहु को क्या जवाब देंगे। फिर भी सास बोली बहु चलो बछ बारस की पूजा करने तालाब पर चलें। दोनों ने जाकर पूजा की। सास बोली - "बहु तालाब की किनार कसूम्बल से खंडित करो।" बहु बोली - "मेरे तो हंसराज और बच्छराज है, मैं खंडित क्यों करूँ ?" सास बोली - ”जैसा मैं कहूँ वैसे करो।"  बहू ने सास की बात मानते हुए किनार खंडित की और कहा - ”आओ मेरे हंसराज, बच्छराज लडडू उठाओ।" सास मन ही मन भगवान से प्रार्थना करने लगी -  "हे बछ बारस माता मेरी लाज रखना।"
         भगवान की कृपा हुई। तालाब की मिट्टी में लिपटा बच्छराज व हंसराज दोनों दौड़े आये। बहू पूछने लगी “सासूजी ये सब क्या है ?” सास ने बहु को सारी बात बताई और कहा - "भगवान ने मेरा सत रखा है। आज भगवान की कृपा से सब कुशल मंगल है।  खोटी की खरी, अधूरी की पूरी। हे बछ बारस माता ! जैसे इस सास का सत रखा वैसे सबका रखना।"


                      बछ बारस की कहानी (2)


           एक सास बहु थीं। सास को गाय चराने के लिए वन में जाना जाना था। उसने बहु से कहा - “आज बछ बारस है मैं वन जा रही हूँ तो तुम गेहूँ लाकर पका लेना और धान लाकर उछेड़ लेना। 
          बहु काम में व्यस्त थी, उसने ध्यान से सुना नहीं। उसे लगा सास ने कहा गेहूंला धानुला को पका लेना।  गेहूला और धानुला गाय के दो बछड़ों के नाम थे। बहु को कुछ गलत तो लग रहा था लेकिन उसने सास का कहा मानते हुए बछड़ों को काट कर पकने के लिए चढ़ा दिया ।
          सास ने लौटने पर पर कहा - "आज बछ बारस है, बछड़ों को छोड़ो पहले गाय की पूजा कर लें।" बहु डरने लगी, भगवान से प्रार्थना करने लगी बोली - "हे भगवान ! मेरी लाज रखना।"
          भगवान को उसके भोलेपन पर दया आ गई। हांड़ी में से जीवित बछड़े बाहर निकल आये। सास के पूछने पर बहु ने सारी घटना सुना दी। और कहा - "भगवान ने मेरा सत रखा, बछड़ों को फिर से जीवित कर दिया। खोटी की खरी, अधूरी की पूरी। हे बछ बारस माता ! जैसे इस बहु की लाज रखी वैसे सबकी रखना।" 
         इसीलिए बछ बारस के दिन गेंहू नहीं खाये जाते और कटी हुई चीजें नहीं खाते है। गाय बछड़े की पूजा करते है।