दृष्टिबाधितों के लिए प्रेरणा का आधार बने
आधार सिंह ने खेल और शिक्षा से हराया जिंदगी का अंधेरा
इन्दौर। अगर दृढ़ इच्छाशक्ति हो तो मार्ग में आने वाली बड़ी बाधाएं भी पीछे हट जाती है। कुछ ऐसा ही चरितार्थ कर दिखाया दृष्टिबाधित शिक्षक आधारसिंह चौहान ने। किसान परिवार में खंडवा जिले के बिलनखेड़ा गांव में 1959 में जन्में आधारसिंह के जीवन में उस समय अंधेरा छा गया जब 6 वर्ष की उम्र में बैल के सिंग मारने से उनकी दाई आँख चली गई। इस हादसे के बाद दूसरी आँख की रोशनी भी चली गई।
युवा अवस्था तक गाँव में रहकर अपनी खेतीबाड़ी के काम में हाथ बंटाया, लेकिन लोगों के ताने कम नहीं हुए। आधार ने इन्हीं तानों को आधार बनाया और किसी स्नेहीजनों की सलाह पर इन्दौर में 1979 में संगीत सीखने के लिए आ गए, लेकिन यहां भी किस्मत ने साथ नहीं दिया। आखिर किसी ने पढ़ाई की सलाह दी, उसके बाद तो आधार ने पिछे मुडक़र नहीं देखा। इन्दौर के किला मैदान स्थित म.प्र. दृष्टिहीन कल्याण संघ से ब्रेललिपि सीखी और 22 वर्ष की उम्र में मिडिल बोर्ड की परीक्षा स्वाध्याय छात्र के रूप में प्रथम श्रेणी में प्राप्त कर गौरव पाया। उसके बाद नियमित विद्यार्थियों के रूप में हायर सैकण्ड्री की परीक्षा उत्तीर्ण की और गुजराती कॉलेज से बी.ए. तथा शासकीय कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय से इतिहास में एमए की डिग्री हांसिल की।
शिक्षा के साथ-साथ आधार सिंह ने खेलों में भी रूचि लेते हुए गौरव पाया। 1981 से लेकर 1987 तक लगातार 8 वर्षों तक दृष्टिहीन एथेलेटिक मीट में प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी रहकर राष्ट्रीय स्पर्धाओं में स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक जीतकर नाम कमाया। इन्हीं खेल उपलब्धियों को देखकर 1987 में प्रदेश की पटवा सरकार ने आपको विक्रम अवार्ड से नवाजा। 1979 से आप सहायक शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे हैं। 2011 में आपको शिक्षा विभाग ने श्रेष्ठ शिक्षक के रूप में सम्मानित किया। इसके अलावा आपको कई पुरस्कार भी मिले। आधारसिंह का जीवन प्रारंभ से संघर्षमय रहा, लेकिन उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारी। वे आज भी सभी के लिए प्रेरणास्रोत बने हुए हैं।
दृष्टिबाधितों के लिए प्रेरणा का आधार बने आधार सिंह ने खेल और शिक्षा से हराया जिंदगी का अंधेरा