कृष्ण का एक रूप यह भी---- अद्भूत रिश्ता --- दोस्ती का

कृष्ण का एक रूप यह भी----



अद्भूत रिश्ता --- दोस्ती का
      कृष्ण ने हर रिश्ते का महत्व बताया जीवन में।
कृष्ण हर रिश्ते में नये भाव लेकर आये।
कृष्ण का राधा से रिश्ता-- प्रेमी प्रेमिका का रहा। कृष्ण का किशोरावस्था का प्रेम।
राधा ने कृष्ण से आत्मिक प्रेम किया।
कर्तव्यपथ पर जाने के कारण कृष्ण उन्हे छोड़ गये।
कृष्ण - रूक्मि प्रेम।
पति के रूप मे कृष्ण ने रूक्मिणी सहित सभी आठ पटरानियों को सम्मान और आदर दिया।
मीरा का प्रेम-- एक मूर्ति का साक्षात होना और भक्त को संपूर्णता देना।
अर्जुन से प्रेम  भाई और बालसखा का स्नेह
पांड़वों से, बहन सुभद्रा से, बलराम से  
सबसे कृष्ण का अलग अलग रूपों में प्रेम रहा
परन्तु 
बालसखा सुदामा से उनका लगाव और स्नेह अलग तरहा से परिभाषित हुआ।
अकेले सुदामा ही ऐसे थे जिनके लिये बैचेन होकर कृष्ण ऐसे दौड़े कि अपना उत्तरीय तक गिरा दिया । स्वयं का भान भूल बैठे।
सभी यही जानते हैं कि सबसे उच्चतम प्रेम की प्रकाष्ठा शायद कृष्ण सुदामा के रिश्ते में थी।
परन्तु कृष्ण का एक रिश्ता ऐसा था जो आज भी रिश्तों की महत्ता और उच्चतम स्थिति को परिभाषित करता है।
वह है -- द्रोपदी और कृष्ण का प्रेम।
वेदव्यास की महाभारत में द्रोपदी और कृष्ण के अनुपम स्नेहिल रिश्ते को दर्शाया गया है।
कृष्ण द्रोपदी के साथी, दोस्त , हमराज और रक्षक की तरहा थे।
द्रोपदी और कृष्ण के भाव एक दूसरे के प्रति स्नेहील,  संरक्षक भाव और अपनापन लिये हुए थे।
दूर रहे या पास दोनों एक दुसरे की पीड़ा, दुख और कष्ट जान लेते थेएक का दर्द दूसरे को महसूस होता था।
तभी तो कृष्ण की ऊंगली जब घायल हुई, अन्य सभी चिंतातुर होकर कृष्ण के लिये वस्त्र का टुकड़ा ढूंढने लगे , द्रोपदी ने बैचेन होकर अपनी किमती साड़ी का टुकड़ा फाड़कर कृष्ण की ऊंगली पर बांध दिया।
जब द्रोपदी का भरी सभा में चीरहरण हुआ कृष्ण ने वस्त्र का अंबार लगाकर द्रोपदी की लाज बचाई।
जंगल में द्रोपदी की परीक्षा लेने दुर्वासा मुनि अपने शिष्यों के साथ भोजन करने आये, कृष्ण ने हांड़ी में से चावल का एक दाना खाकर दुर्वासा मुनि और सबको तृप्त कर दिया और द्रोपदी की परीक्षा स्वयं दे दी।
अद्भूत रिश्ता था दोनों का।
एक महिला और पुरूष की दोस्ती, जिसमें ना शारिरीक चाह थी, ना संगति की चाह  , ना इक दूजे से कोई आस की चाह।
दोनों ही एक दूसरे के दुख में दुखी भी होते, पीड़ा को बांट भी लेते, जरूरत पड़ने पर इक दूजे के पास हाजिर भी हो जाते।
    एक स्त्री और पुरूष का यह रिश्ता भी हो सकता है ये आज के युग में भी समझने की आवश्यकता है , जहां आज भी स्त्री पुरूष के रिश्ते को एक परम्परावादी खांचे में बांधा हुआ है।
उससे परे है----
कृष्ण-- द्रोपदी का अद्भूत मित्रभाव ।
कृष्ण ने अपना नाम कभी किसी को नहीं दिया--
सिर्फ द्रोपदी कहलायी---- कृष्णा।
कृष्ण की कृष्णा।