मोदी को मुस्लिम बहनो की राखियों के सियासी और जज्बाती धागे...!

मोदी को मुस्लिम बहनो की राखियों के सियासी और जज्बाती धागे...! 
अजय बोकिल 
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राखी धागों का त्यौहार है। ये धागे भाई-बहन के पवि‍त्र  प्रेम के हैं, लेकिन ये धागे भी सियासी रंग लेने लगें तो क्या कीजिएगा? यह बात इसलिए कि वाराणसी की कुछ मुस्लिम महिलाअों ने अपने क्षेत्रीय सांसद और देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को अपने हाथ से बनाई राखियां भेजी हैं। मानकर कि भाई हो तो ऐसा। बताया जाता है कि राखी भेजने वाली ये बहने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन तलाक के खिलाफ कानून बनाए जाने से बेहद खुश हैं और इस खुशी का इजहार राखी के रूप में हुआ है। मुस्लिम महिलाअों द्वारा इस तरह राखी भेजे जाने पर कुछ मौलानाअों को आपत्ति है। उनका आरोप है कि आरएसएस का आनुषांगिक संगठन यह सब करवा रहा है। यह सस्ते प्रचार का तरीका है। हालांकि कुछ अन्य मुस्लिम नेताअों का मानना है कि राखी भेजने में कुछ भी गैर नहीं है। 


उधर, राखी बनाने वाली मुस्लिम महिलाओं का कहना है, 'जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने तीन तलाक जैसी कुप्रथा को खत्म करवाया, वह केवल एक भाई ही कर सकता है। अपने भाई के लिए हम बहनें अपने हाथों राखी बनाकर भेज रही हैं।' राखी के ऊपर मोदी की फोटो लगाई गई है। उन्होंने कहा, 'मोदीजी ने हमारी दयनीय हालत को खत्म किया है। इसी कारण हम लोगों ने यह पवित्र बंधन राखी भेजी। राखी बनाने वाली एक और मु‍स्लिम महिला हुमा बानो का कहना है कि मोदी ने हम लोगों के दर्द को समझा है। तीन तलाक से मुक्ति दिलाई है। पूरे देश की मुस्लिम महिलाओं को उन्हें राखी भेजनी चाहिए। मौलाना इससे बेवजह नाराज हो रहे हैं।
राखी भेजने वाली मुस्लिम महिलाअों का कहना है कि हमारे मन से तीन तलाक का खौफ कम हो गया है। आने वाले वक्त में सारा डर खत्म होगा। बानो ने यह भी कहा कि प्रधानमंत्री मोदी ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाकर वहां भी बहुत सारे बंधनों से लोगों को मुक्त कराया है। मैं देश को यह संदेश देना चाहती हूं कि राखी एक पवित्र रिश्ता है। इस बंधन को निभाना है, चाहे वह कश्मीर की बेटी हो या कहीं और की। राखी पाक रिश्ता बनाती है, चाहे हिंदू हो या मुस्लिम हो। 
इस पहल का विरोध करने वाले मुस्लिम नेताअों का कहना है कि यह सब दिखावा है, जिसे राष्ट्रीय मुस्लिम मंच करवा रहा है। इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के प्रदेश अध्यक्ष मतीन खान के मुताबिक कि राष्ट्रीय मुस्लिम मंच से जुड़े लोग नकाब और टोपी पहनकर इस तरह की हरकतें करते हैं, जिससे मुस्लिमों में आपस में बगावत हो। ये बिकाऊ माल सत्ताधारी लोगों के दबाव में ऐसा काम कर रहे हैं। इसी तरह शेखू  आलम साबरिया चिश्तिया दरसा के मौलाना इस्तिफाक कादरी का कहना है कि मुस्लिम महिलाओं के सामने और भी बहुत सारे मसले हैं, हुकूमत को उन पर भी ध्यान देना चाहिए। दूसरी तरफ ऑल इंडिया महिला मुस्लिम लॉ बोर्ड की अध्यक्ष शाइस्ता अंबर का कहना है कि राखी भेजने में किसी को क्या दिक्कत होगी। तीन तलाक जैसी कुप्रथा के बारे में लोगों को जागरूक करने की जरूरत है।


मुमकिन है कि राखी भेजने वाली मुस्लिम महिलाअों के बयान में लोगों को भगवा रंग की झलक दिखे। यह भी संभव है कि उनसे यह सब कहलवाया गया हो ताकि मोदी को तीन तलाक रूपी असुर का वध करने वाले देवता के रूप में  प्रतिष्ठित किया जा सके। यह बताने की कोशिश हो कि वाराणसी की राखी भेजने वाली मुस्लिम महिलाएं जो कह रही हैं, वह तमाम मुस्लिम महिलाअों के दर्द की प्रतिनिधि अभिव्यक्ति है। और यह भी कि मोदी के आने के बाद मुस्लिम महिलाअों की सामाजिक हैसियत में सम्मानजनक सुधार आया है। 
हो सकता है कि इस तरह प्रधानमंत्री मोदी को राखी भेजना (या भिजवाना) एक एजेंडे के तहत हो, लेकिन राखी या रक्षाबंधन को किसी धार्मिक स्कैनर से देखने की कोशिश बेमानी है। पहली बात तो यह है कि राखी कोई उस तरह का त्यौहार नहीं है, जिसमें कोई धार्मिक कर्मकांड या पूजा-पाठ हो। इस त्यौहार में नमक की तरह अगर कुछ 'हिंदूपन' है भी तो इतना कि बहन भाई को तिलक लगाती है और मंगल कामना के लिए उसकी आरती उतारती है। हालांकि इस प्रक्रिया के बगैर भी राखी मन सकती है, बंध सकती है, बांधी जा सकती है। क्योंकि इस त्यौहार में भावना का ज्यादा महत्व है, कर्मकांड का नहीं।  


कुछ लोगों को आपत्ति राखी भेजने से ज्यादा उस पर बने प्रतीकों को लेकर है। मसलन मोदी को भेजी राखियां दो तरह की बताई जाती हैं। एक है 'तीन तलाक मुक्त' और दूसरी '370 मुक्त।' लोगों का मानना है कि भाई बहन के प्रेम के ये धागे सियासी रंग में रंगे हुए क्यों हों? इस ऐतराज में कुछ दम है। बावजूद इसके कि राखी बहन भाई के प्यार का दो तारों में बंधा संसार है। राखी भेजने की राजनीतिक मंशा पर आपत्ति जायज है, लेकिन राखी भेजने पर ऐतराज जताना तो अगरबत्ती  की सुगंध में फिनाइल की बू खोजने जैसा है। दरअसल राखी एक शुद्ध रूप से लौकिक और अध्यात्मरहित पर्व है। यह भाई द्वारा बहन की मान मर्यादा की रक्षा का ‍िबना किसी स्टाम्प पेपर के दिया गया ऐसा अमिट वचन है, जो केवल इस रिश्ते की पाकीजगी और  शुभ्र संकल्प से नोटराइज होता है। फिरकाई एकता की निगाह से देखें तो भी इस त्यौहार की ज्ञात कथा एक मुस्लिम बादशाह हुमायूं द्वारा एक हिंदू बहन रानी  कर्णावती की गुहार पर मदद के लिए दौड़े चले आने और उसकी लाज रखने की है। ऐसे में मुस्लिम बहनें अपने भाई को राखी भेजकर उसी पाक रिश्ते का ट्रेलर फिर से चलाएं तो गलत क्या है ? यह भी समझना मुश्किल है आखिर आपत्ति मुस्लिम बहनो द्वारा हिंदू भाई को राखी भेजने को लेकर है या मोदी अथवा गृह मंत्री अमित शाह को लेकर है? या फिर इन नेताअों को महानायक के रूप में चित्रित करने को लेकर है? 
इन सवालों में  निहित एजेंडे को समझना मुश्किल नहीं है। लेकिन उसके बाद भी राखी भेजने और बांधने की भावना की पवित्रता को संदेह से देखना सही नहीं है। क्योंकि राखी शब्द में ही कल्याण शुभकामना और प्रतिदान का भाव छुपा हुआ है। यह भाव धर्म, जाति, अमीर, गरीब अथवा किसी सियासी मंशा से बाधित नहीं होता। होना भी नहीं चाहिए, चाहे वह मुस्लिम बहनों की हिंदू भाई को भेजी राखी क्यूं न हो।
'राइट  क्लिक'
( 'सुबह सवेरे' में दि. 14 अगस्त 2019 को प्रकाशित)