*आईडीए की आड़ में दो हजार हेक्टेयर जमीन पर भूमाफियाओं ने किए खेल* *- अधूरी योजनाओं की आड़ में जमीनों की अफरातफरी के साथ कट रही अवैध कॉलोनियां*

*आईडीए की आड़ में दो हजार हेक्टेयर जमीन पर भूमाफियाओं ने किए खेल*


*- अधूरी योजनाओं की आड़ में जमीनों की अफरातफरी के साथ कट रही अवैध कॉलोनियां*


  इंदौर, ।इंदौर विकास प्राधिकरण ने शहर के विकास से ज्यादा विनाश करने का काम किया है। सैकड़ों योजनाएं आईडीए ने शहर में लांच की जिसके लिए लोगों की बेशकीमती जमीनें हथिया ली गईं। शहर में जमीनों का एक बड़ा हिस्सा इन्हीं योजनाओं की जद में आज भी फंसा हुआ है। खास बात यह है कि आज भी आईडीए की ये योजनाएं अधूरी हैं। इनकी आड़ में अवैध कॉलोनियां कट गईं। यही नहीं, जिन गृह निर्माण संस्थाओं की जमीन इन योजनाओं में आई, उन संस्थाओं के कर्ताधर्ताओं ने आईडीए को खौफ दिखाकर जमीन बेचना शुरू कर दिया। कुल जमा बात इतनी है कि आईडीए के आइडिया ने ही शहर में भूमाफियाओं को जमीन हड़पने का मौका दिया। विवाद ज्यादातर स्कीमों से जुड़े हुए हैं। इन्हीं स्कीमों के चलते शहर की बेशकीमती दो हजार हेक्टेयर से ज्यादा जमीन फ्रीज हो गई है। मोटे तौर पर अगर देखें तो करीब बीस हजार करोड़ से ज्यादा की जमीन पर आईडीए का बेजा कब्जा है। आईडीए की पहचान आज सिर्फ भूमाफियाओं को फायदा पहुंचाने वाली संस्था के रूप में होकर रह गई है। जमीनों के मामले में लगातार कोर्ट से आईडीए हार रहा है, वहीं कई अहम मामले आज भी सुप्रीम कोर्ट में विचाराधीन हैं।


*उपलब्धि से ज्यादा खाते में विवाद दर्ज -*
इंदौर विकास प्राधिकरण एक ऐसी संस्था जिस पर शहर के विकास और मास्टर प्लान के क्रियान्वयन की अहम जिम्मेदारी है। इतने अहम रोल में होने के बावजूद आईडीए के खाते में उपलब्धियों से ज्यादा विवाद दर्ज हैं जिसमें सबसे ज्यादा नुकसान उन गृह निर्माण संस्थाओं के सदस्यों का हुआ जिनकी जमीनों पर आईडीए ने स्कीम डाल दी। ऐसी दर्जनों स्कीम हैं जिनकी समय सीमा पूरी हो चुकी है। आईडीए की कई स्कीमें ऐसी भी हैं जो 10 से 20 साल पहले खत्म हो गई लेकिन डि-नोटिफिकेशन न होने, अवार्ड वापस न लेने सहित अन्य कारणों से यहां एनओसी तक नहीं मिल रही है। दूसरी ओर इसी कारण शहर में अवैध कालोनियां और अवैध निर्माण बड़े पैमाने पर हो रहे हैं, फिर चाहे कनाड़िया, खजराना या चंदन नगर क्षेत्र हो या फिर एयरपोर्ट या राऊ क्षेत्र की स्कीम।


*42 साल में 87 योजनाएं -*
13  मई 1977 से अस्तित्व में आए आईडीए से पहले यह काम नगर सुधार न्यास के जिम्मे था। न्यास ने ही शहर में पहली स्कीम घोषित की थी। मनोरमागंज क्षेत्र की इस योजना को स्कीम नंबर 1 नाम दिया गया। इसके बाद एक के बाद एक स्कीम नंबर 90 तक नगर सुधार न्यास ने घोषित की। आईडीए के प्रभाव में आने के बाद स्कीम नंबर 91 से  स्कीम नंबर 177 स्कीम तक सारी योजनाएं आईडीए के बैनर पर ही लांच हुईं। कुल 87 योजनाएं हैं जिसे अब तक आईडीए लांच कर चुका है।


*ये है आईडीए की प्रमुख आवासीय योजनाएं -*


*स्कीम नंबर 95 -*
पीपल्याराव की जमीन पर 1984 में स्कीम घोषित की गई। जमीन नहीं मिली तो मामला भू-अर्जन के पास गया। मौके पर मकान बने देख भू-अर्जन अधिकारी ने जमीन का मुआवजा देने से इनकार कर दिया। आईडीए ने स्कीम खत्म कर दी। इसके बाद से इसका डि-नोटिफिकेशन नहीं हुआ। इसका फायदा भूमाफियाओं ने उठा लिया। सवार्नंद नगर सोसायटी के कर्ताधर्ताओं ने लोगों को स्कीम का डर दिखाकर जमीनें खरीद ली। इसके बाद प्लॉटों की हेराफेरी का खेल शुरू हुआ जो आज तक जारी है।


*स्कीम नंबर 119 नया नाम 165 -*
राऊ के आसपास 439.31 हेक्टेयर जमीन पर आईडीए ने 1986 में स्कीम 119 लांच की। उद्देश्य था आवास उपलब्ध करवाना। समय-सीमा में आईडीए इसे लागू नहीं करवा पाया। बाद में यहां 2011-12 में स्कीम का नाम बदलकर 165 के नाम से इसे लागू किया गया। आईडीए ने 20 हेक्टेयर जमीन के लिए भू-अर्जन को केस भेजा तो 120 करोड़ रुपए का अवार्ड पारित हुआ। आईडीए ने इतना पैसा देने से इनकार कर दिया जिसके चलते पूरी स्कीम अधर में लटक गई। उधर, इस जमीन पर अवैध कालोनाइजेशन भी हो रहा है और अवैध निर्माण जारी है।


*स्कीम नंबर164, फिर168 और अब 175 -*
खजराना से बायपास तक आईडीए ने सबसे पहले 500 एकड़ में आवासीय स्कीम डाली। पहले नाम दिया 164। योजना तय समय में पूरी नहीं हुई तो स्कीम 168 के नाम से री-लांच कर दिया गया। नाम बदला लेकिन स्कीम आकार नहीं ले पाई तो जमीन छोड़ने के बजाय तीसरी बार स्कीम 175 नाम दे दिया गया। आज इस बात को भी पांच साल से ज्यादा हो गए हैं, न तो आईडीए जमीन ले पाया, न ही स्कीम के नाम पर किसी की जमीन छोड़ी। हां, इन स्कीमों के चक्कर में अवैध कालोनियां तेजी से पनप रही हैं।


*स्कीम नंबर 171 -*
आईडीए की स्कीम नंबर 171 अब तक की सबसे विवादित स्कीम है। बीस साल पुरानी स्कीम में आईडीए ने सिर्फ उलझन ही पैदा की है। भूमाफियाओं के कब्जे वाली हाउसिंग सोसायटी के कारण आज तक इसका निराकरण न तो आईडीए कर पाया, न ही सहकारिता विभाग। इस स्कीम का नाम पर 132 था जिसमें 15 से ज्यादा सोसायटियों के 10 हजार से ज्यादा प्लॉट फंस गए। समय पर निर्णय नहीं होने के कारण स्कीम 171 के नाम से इसे फिर लांच किया गया। बॉम्बे हास्पिटल के सामने न्याय नगर, पुष्प विहार सहित अन्य कालोनियों में 5 हजार से ज्यादा अवैध निर्माण हो चुके हैं। संस्थाओं से मिलीभगत कर भूमाफियाओं ने संस्थाओं की जमीनों में जमकर अफरातफरी भी की जिसके खिलाफ आईडीए ने कोई कदम नहीं उठाया।


*स्कीम नंबर 53 -*
ग्राम खजराना में आईडीए की एक और स्कीम है जिसका नाम स्कीम नंबर 53 है। इस स्कीम में सुविधा गृह निर्माण और रघुुवंशी गृह निर्माण संस्था की जमीनें शामिल हो गईं। आईडीए ने इन संस्थाओं से संकल्प कर लिया। लंबे समय से सदस्य प्लॉट के इंतजार में बैठे रहे। पांच साल पहले सोसायटियों पर हुई कार्रवाई के बाद विकास शुल्क देकर प्लॉट देने की बात हुई थी पर मेंबर को प्लॉट कभी मिले नहीं।


*स्कीम नंबर 77 -*
कनाडिया से खजराना तक कुल 113 हेक्टेयर जमीन पर आईडीए ने स्कीम लागू की थी। इस स्कीम के बारे में अब आईडीए कुछ करना नहीं चाहता। उधर, जमीन अटकाकर रख ली जिसके चलते भूमाफिया सक्रिय हो गए। स्कीम की जमीन में से 4 हेक्टेयर पर गीतानगर बना हुआ है। बाकी जमीन पर अवैध कालोनियां काट गई हैं। आईडीए की प्राथमिकता में अब यह स्कीम नहीं है।


*आईडीए स्कीम फैक्ट फाइल -*
आईडीए की कुल स्कीम - 177
आईडीए द्वारा लागू स्कीम - 87
कुल स्कीम एरिया, आईडीए द्वारा घोषित- 3890 हेक्टेयर
डेवलप एरिया- 947 हेक्टेयर
ड्राप या खत्म हो चुकी स्कीम का एरिया : 648 हेक्टेयर
योजनाएं जो अटकी हैं या जमीन लेना बाकी है- 2295 हेक्टेयर