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श्रीराम ताम्रकर स्मृति फिल्म प्रसंग में 'नई सदी के सिनेमा' और 'साम्प्रदायिकता के विरूद्ध सिनेमा' पर की गई बात
प्रसिद्ध मीडिया क्रिटिक स्व. श्रीराम ताम्रकर की याद में संस्कृति संचालनालय मध्यप्रदेश हर वर्ष सिनेमा को लेकर कार्यक्रम रखता है। इस कार्यक्रम का मूल उद्देश्य गंभीर सिनेमा को बढ़ावा देना, सिनेमा के बारे में विचार-विमर्श और उम्दा फिल्मों का प्रदर्शन है। 2019 में यह कार्यक्रम 'श्रीराम ताम्रकर स्मृति फिल्म प्रसंग' उज्जैन स्थित त्रिवेणी संग्रहायल में रखा गया।
श्रीराम ताम्रकर को चलता-फिरता सिनेमा का एनसाइक्लोपीडिया का विशेषण दिया गया था। हिन्दी सिनेमा की हर जानकारी उन्हें मुंहजबानी याद थी। उन्होंने फिल्म पत्रकारिता को गंभीरता प्रदान की। उन्होंने न केवल लोगों को यह सिखाया कि फिल्म कैसे देखी जानी चाहिए बल्कि विश्वविद्यालय में फिल्म को पढ़ाया जाने वाला विषय बनाया। प्रतिष्ठित अखबार नईदुनिया के एि परदे की परियां, सरगम का सफर, नायक-महानायक, विश्व सिनेमा जैसा आठ कलेक्टर्स इश्यू और फिल्म संस्कृति के 43 अंकों की परिकल्पना और संपादन किया।
इस दो दिवसीय कार्यक्रम का शुभारंभ 13 दिसम्बर को हुआ। 'नई सदी का सिनेमा- दो दशक' पर डॉ. सोनाली नरगुंदे, समय ताम्रकर, सत्यनारायण व्यास, फिल्म अभिनेत्री नवनी परिहार और फिल्म अभिनेता मुकेश तिवारी ने अपने विचार रखे। बीस साल में सिनेमा में कितने बदलाव देखने को मिले, सिनेमा कितना बेहतर हुआ, सिनेमा के सामने क्या चुनौतियां हैं जैसे मुद्दों पर वक्ताओं ने अपने विचार रखे।
'साम्प्रदायिकता के विरूद्ध सिनेमा' पर जयन्त देशमुख, दयाशंकर पाण्डेय और विनोद भारद्वाज ने बताया कि किस तरह से फिल्म इंडस्ट्री में सद्भाव है। सभी धर्मों के लोग आपस में मिलजुल कर काम करते हैं। किसी को भी धर्म के आधार पर नहीं बल्कि प्रतिभा के आधार पर काम मिलता है। इस दिन हरीश व्यास की फिल्म 'अंग्रेजी में कहते हैं' (2018) भी दिखाई गई।
14 दिसंबर को 'सद्भाव का सिनेमा' (सदृश्य सोदाहरण विश्लेषण) पर डॉ. अनिल चौबे ऑडियो-वीडियो के माध्यम से अपनी शानदार प्रस्तुति दी। उन्होंने सिनेमा की क्लिंपिंग के माध्यम से अपनी बात कही। इस दिन एमएस सथ्यू की 'गर्म हवा' (1974) और 'मालामाल वीकली' (2006) भी दिखाई गई।
कार्यक्रम में उज्जैन और इंदौर के कई गणमान्य लोग उपस्थित थे जिन्होंने इस ज्ञानवर्धक कार्यक्रम में हिस्सा लिया।